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Vibhats Ras (वीभत्स रस) – परिभाषा, भेद और उदाहरण | Hindi Grammar

वीभत्स रस का काव्य के सभी नौ रसों में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। चार प्रमुख रस — वीर रस, वीभत्स रस, श्रृंगार रस और रौद्र रस। इन्हीं प्रमुख चार रसों से भयानक, वात्सल्य, शांत, करुण, भक्ति, हास्य रसों की उत्पत्ति हुई है।

एक चरित्र की मन:स्थिति जब वह निराशाजनक विचारों और चिंता से गुजर रहा होता है, उसे वीभत्स रस के रूप में जाना जाता है। तो संक्षेप में हम कह सकते हैं घृणित चीजो, घृणित वस्तुएं या घृणित लोगों को देखने, सोचने या सुनने के बाद मन में जो घृणा या ग्लानि उत्पन्न होता है, वह केवल वीभत्स रस की पुष्टि करता है, अर्थात घृणा और ईर्ष्या वीभत्स रस के लिए आवश्यक हैं।

Vibhats Ras (वीभत्स रस) - परिभाषा, भेद और उदाहरण | Hindi Grammar
Vibhats Ras (वीभत्स रस) – परिभाषा, भेद और उदाहरण | Hindi Grammar

वीभत्स रस परिभाषा

जब काव्य रचना में घृणास्पद बातों या वाक्याओं का उल्लेख किया जाता है, तो वहाँ वीभत्स रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा यदि किसी व्यक्ति में परिपक्व घृणा है, तो वे वीभत्स रस की स्थिति में हैं।

अथवा काव्य को सुनते समय, यदि कवि किसी प्रतिक्रिया को भड़काने की कोशिश कर रहा है, तो घृणा की भावना उत्पन्न होती है। इसे वीभत्स रस कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, वीभत्स रस एक ऐसा रस है जहाँ घृणा की भावना होती है या जहाँ स्थायी भावना जुगुप्सा होती है।

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वीभत्स रस के अवयव

स्थायी भाव :- घृणा / जुगुप्सा 

उद्दीपन विभाव :-

  • घृणित चेष्टाएं
  • कीड़े पड़ना
  • मांस का सड़ना
  • रक्त
  • दुर्गन्ध आना

अनुभाव :-

  • थूकना
  • आँखे मीचना
  • मुंह फेरना
  • झुकना

आलंबन विभाव :-

  • विलासिता
  • अन्याय
  • छुआछूत
  • घृणास्पद व्यक्ति या वस्तुएं
  • धार्मिक पाखंडता
  • नैतिक पतन
  • चर्बी
  • व्यभिचारी
  • रक्त
  • पाप कर्म
  • दुर्गंधमय मांस

संचारी भाव :-

  • मूर्छा
  • आवेद
  • मरण
  • जढ़ता
  • व्याधि
  • मोह
  • वैवर्ण्य

उदहारण:

लता ओट तब सखिन्ह लखाए ।
स्यामल गौर किसोर सुहाए।।
देखि रूप लोचन ललचाने।
हरषे जनु निज निधि पहिचाने।।

निसि-दिन बरषत नैन हमारे ।
सदा रहति पावस रितु हम पै, जब तैं स्याम सिधारे ।।
दृग अंजन न रहत निसि बासर, कर-कपोल भए कारे ।
कंचुकि पट सूखत नहिं कबहूँ, उर बिच-बहत पनारे ।।

निकल गली से तब हत्यारा
आया उसने नाम पुकारा
हाथ तौल कर चाकू मारा
छूटा लोहू का फव्वारा
कहा नहीं था उसने आख़िर उसकी मृत्यु होगी

सिर पर बैठो काग, अंखि दोउ खात निकारत।
खींचत जी भहिं स्यार, अतिहि आनंद उर धारत।।
गिद्ध जाँघ कह खोदि खोदि के मांस उचारत।
स्वान आँगुरिन काटि काटि के खान बिचारत।।

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